बांदा-डीवीएनए। जिले में पंचायत चुनावों के नतीजों को अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की रिहर्सल के रूप में देखा जा रहा है। ये नतीजे सत्तारूढ़ दल भाजपा के लिए क्या कठिनाई मूलक होगी?जनपद के सांसद और चारों विधायक भाजपा के होने के कारण यह मुद्दा राजनीतिक क्षेत्र में चर्चा का विषय हैं। जिले की 30 जिला पंचायत सीटों में भाजपा को मात्र सात सीटों पर सफलता मिली है।
भाजपा सहित सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के हाईकमान ने अपने अध्यक्षों को पंचायत चुनावों को चंद महीने बाद होने वाले चुनावों को प्रभावित करने की दलीलें देकर अपने कार्यकर्ताओं को जोश दिलाया था लेकिन चुनावी नतीजों से यही सामने आया कि इस मूलमंत्र को सबसे ज्यादा बसपा जिलाध्यक्ष ने अपनाया।
कई वर्षों से राजनीतिक हासिये पर होने के बाद भी जनपद में बसपा ने पंचायत चुनाव में अपनी जोरदार उपस्थिति दर्ज कराकर सत्तारूढ़ दल समेत सपा, कांग्रेस आदि को भी चैंका दिया है। पंचायत चुनाव में नाकामी और कोरोना महामारी में सरकारी अव्यवस्थाओं से भाजपा आलोचनाओं के घेरे मैं है।
प्रमुख विपक्षी भाजपा की इस स्थिति को आम लोगों के बीच बरकरार रखने में सफल रहे तो अगले वर्ष के शुरूआती महीनों में होने वाले विधान सभा चुनाव में भाजपा को कड़ी मेहनत का सामना करना पड़ सकता है। जिला पंचायत जिले की महत्वपूर्ण निकाय मानी जाती है। इसमें निवर्तमान अध्यक्ष भाजपा की सरिता द्विवेदी थीं।
जिन्होने अपने कार्य काल में विकास की सरिता बहाई। वह विधायक प्रकाश द्विवेदी की पत्नी हैं।यह जोड़ी विकास कार्य के लिए चर्चित रही।
पंचायत चुनाव नतीजों ने भाजपा की जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर पुनः वापसी काफी जटिल और चुनौती भरी कर दी है। अध्यक्ष के लिए कम से कम 16 सदस्यों की जरूरत होगी जबकि भाजपा समर्थित सदस्य मात्र सात हैं। भाजपा को बाकी नौ सदस्य जुटाने में काफी पापड़ बेलने होंगे।
जनपद के सांसद सहित चारों भाजपा विधायकों के निर्वाचन क्षेत्र में कहीं भी भाजपा जिला संगठन के नेतृत्व की अक्षमता सेअच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई? हर क्षेत्र में सपा और बसपा तथा अपना दल ने सेंधमारी की। बबेरू क्षेत्र में जिला पंचायत की लगभग आठ सीटें हैं। यहां भाजपा को मात्र दो सीटें मिली हैं।
सपा सब पर भारी रही और तीन सदस्य जिताए। बसपा को दो सीटों पर सफलता मिली है। तिंदवारी क्षेत्र में लगभग पांच डीडीसी वार्ड हैं। यहां भी भाजपा को मात्र एक सीट मिली है। बसपा ने जहां दो सीटों पर कब्जा किया है वहीं सपा को एक वार्ड में सफलता मिली है। बांदा विधान सभा क्षेत्र में पांच वार्डों में भाजपा को सिर्फ एक सीट पर ही जीत मिली है। दो में बसपा जीती है। नरैनी विधान सभा क्षेत्र में अपना दल ने दो सीटें जीती हैं। यहां भाजपा और बसपा को एक-एक सीट मिली है।
भाजपा पर उसके बागी भी भारी पड़े। उदाहरण के लिए बबेरू क्षेत्र के वार्ड पांच में भाजपा के पूर्व मंत्री शिवशंकर सिंह पटेल की पत्नी कृष्णा पटेल ने टिकट न मिलने पर बगावत करते हुए निर्दलीय चुनाव लड़ा था। वह जीत गईं। हालांकि भाजपा हाईकमान ने मतदान के पहले ही पूर्व मंत्री श्री पटेल को पार्टी से छह वर्ष के लिए निष्कासित कर दिया था।
जिला पंचायत चुनाव में अबकी अपना दल ने अन्य दिग्गज दलों को चैंका दिया है। नरैनी विधान सभा क्षेत्र में दो वार्डों 25 व 26 में पार्टी को वहां के मतदाताओं ने अपनाया है। बांदा विधान सभा क्षेत्र के वार्ड 21 में भी अपना दल की महिला प्रत्याशी जीती हैं।
जिला पंचायत चुनाव में बसपा ने सत्तारूढ़ दल भाजपा से चार सीटें और 34513 वोट अधिक हासिल किए। बसपा को सभी 11 वार्डों में 73,003 वोट प्राप्त हुए। जबकि भाजपा सात वार्डों में 38490 वोट हासिल कर सकी।
जिला पंचायत चुनाव के नतीजों पर राजनीतिक दल और उनके जनप्रतिनिधि अपनी सफाई में तरह-तरह की दलीलें दे रहे हैं। भाजपा जिलाध्यक्ष रामकेश निषाद ने पार्टी की हार की वजह कोरोना महामारी बताई। अध्यक्ष की पहली परीछा में ही अपनी कार्य प्रणाली से संगठन की ताकत का बंटाधार कर दिया! प्रत्याशी चयन में अपनी मन मानी से बचते हैं। ऐसे कंडी डेट उतरवाए जिससे बांदा में पार्टी का आधार इस चुनाव में खिसक गया?कहते हैं किअध्यक्ष का चुनाव उनकी पार्टी लड़ेगी। सांसद आरके सिंह पटेल का कहना है कि वह संक्रमित होकर चित्रकूट स्थित अपने आवास में होम आइसोलेशन में थे।हालांकि निष्क्रियता में वह भी दस नम्बरी माने जाते हैं?
सदर विधायक प्रकाश द्विवेदी को भी कोरोना नें संक्रमित कर होम आइसोलेशन में रहने को मजबूर कर दिया। अन्यथा बांदा विधान सभा क्षेत्र में परिणामों पर भाजपा अन्य पर भारी पड़ती। विधायक राजकरन कबीर ने भी हार का ठीकरा कोरोना पर फोड़ा। कहा कि महामारी से प्रचार प्रभावित हुआ।वैसे वह अपने इलाके में कथित तौर पर बहुत आलोकप्रिय हैं। उधर, बसपा जिलाध्यक्ष गुलाब वर्मा का कहना था कि मतदाताओं में बसपा के प्रति पूरा रुझान है। पंचायत चुनाव ने यह साबित कर दिया। दावा किया कि विधान सभा चुनाव में हम ऐसा ही प्रदर्शन दोहराएंगे।
जिला पंचायत सदस्य की 30 सीटों में सपा के सिर्फ तीन सदस्य ही निर्वाचित हुए। इसकी मुख्य वजह गुटबाजी मानी जा रही है। इसके अलावा ज्यादातर पार्टी के दिग्गज नेता चुनाव प्रचार से दूर रहे। इसी का नतीजा है कि सपा पंचायत चुनाव में ज्यादा प्रभावी नहीं रही। हालांकि तीन सीटों पर उसने सफलता की कहानी लिखी। कहा जाता है कि यदि पार्टी से जुड़े दिग्गजों का सहयोग मिलता तो चुनाव परिणाम और भी बेहतर हो सकता था। हालांकि जिलाध्यक्ष विजयकरन यादव ने गुटबाजी से इनकार किया है।
संवाद विनोद मिश्रा
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बांदा पंचायत चुनाव: भाजपा के लिए गहन मंथन जरूरीए विधानसभा चुनाव का था रिहर्सल!
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