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आम किसान खुश, सिर्फ मंडियों के दलालों को हो रही तकलीफ: आरके सिन्हा

नई दिल्ली।  किसान आंदोलन को लेकर भाजपा के संस्थापक सदस्य एवं पूर्व राज्य सभा सांसद आर के सिन्हा ने बड़ा बयान दिया है। हमारे सहयोगी मीडिया संस्थान यूपीयूकेलाइव के एडिटर इन चीफ मुहम्मद फैज़ान से विशेष बातचीत में आर के सिन्हा ने विस्तार से कई अहम मुद्दों पर चर्चा की। 

किसान नए कृषि कानूनों को लेकर सरकार से नाराज हैं, इन कृषि कानूनों पर आपकी क्या राय है?
जो लोग कहते हैं कि वे किसान हैं और नाराज हैं, उन पर मुझे तो बहुत गंभीर शक है कि वो किसान हैं भी कि नहीं हैं।  किसान और मंडियों के बीच कुछ दलाल जरूर कुछ काम करते थे, उनको तकलीफ पहुंची है इससे। क्योंकि किसान आज बिना दलालों की दादागिरी के, बिना मंडियों की पाबंदी के कहीं भी अपना माल बेच सकता है। आम किसान खुश है, कुछ उनके दिग्भ्रमित नेता और मंडियों के दलाल जरूर नाराज हो सकते हैं। 

किसान नेता नरेश टिकैत ने हाल ही में कहा है कि बीजेपी में खलबली मची है। अगर शुरुआत हुई तो एक साथ 100 एमपी टूट कर आ जाएंगे, इस पर आपकी क्या राय है?
वो 100 की बात न करें, पहले एक बीजेपी के एमपी को ले आएं। इतनी हल्की बातें करने वाले लोगों का कोई मतलब नहीं होता है। 

शुरू से किसान आंदोलन गैर-राजनीतिक  बताया जा रहा है, लेकिन कुछ राजनीतिक नेता अब मंच साझा करते दिखे हैं, इसका क्या मतलब है?
शतप्रतिशत राजनीतिक आंदोलन है। 10-10, 12-12 करोड़ एक-एक राज्यों के अध्यक्षों को दिया है। किसने दिया है वो भी नाम सामने आ गया है। इस आंदोलन की आड़ में नक्सली और आतंकी मौज कर रहे हैं।  ये मोदी विरोधी आंदोलन है, किसान आंदोलन नहीं है। 

तो इसका हल कैसे निकलेगा?, ये आंदोलन कब तक चलेगा?
हल खुद निकल जाएगा, किसानों के ही हाथों में इसका समाधान होगा। 

आम छोटे किसान के लिए आपका क्या सन्देश है?
आम छोटा किसान बहुत खुश है। उसको सरकार की तरफ से 6 हज़ार रुपया मिल रहा है। सीधे उसके अकाउंट में ट्रांसफर हो रहा है। बीच में कोई दलाली नहीं  देनी पड़ रही है। वो अपनी सब्जी-अनाज जहां दाम ज्यादा मिलता है, वहां बेचता है। 

जो बॉर्डर पर किसान बैठे हैं, क्या उनमें कोई भी किसान नहीं है?
ये मैं नहीं कह रहा। मैंने कहा- कुछ गुमराह किसान, जिन्हें गलत गलत बात कहकर गुमराह किया गया। खालसा पंत का नाम लेकर ही गुमराह किया गया। कुछ वामपंथी दलों के हैं, जो लाल झंडा लगाकर घूमते हैं, उनको तो छोड़ ही दीजिये। 

आपके हिसाब से जो गुमराह किसान हैं, वो भी तो हमारे अन्नदाता हैं?
वो अब वापस जा रहे हैं। जो समझ रहे हैं इनके गेम को ऐसे सारे संगठन वापस जा रहे हैं।

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