
बांदा-डीवीएनए। जिले में जिला पंचायत चुनाव में भाजपा समर्थित प्रत्याशियों में अधिकांश की हार से जिला भजपा संगठन सकते में हैं और इसके लिये सर्वाधिक दोषी पार्टी में जिलाध्यक्ष रामकेश निषाद को माना जा रहा है! यह हमारे व्यक्तिगत आरोप नहीं है! यह स्वर संगठन के अंदर चर्चा का विषय बना हुआ है? प्रत्याशियों के चयन में धन वसूली जबरदस्त की गई? पार्टी के अंदर से छन कर आ रही सूचनओं को यदि सही माना जाये तो ष्दस लाख दो और टिकट लोष् का ज्यादातार यही राजनीतिक शतरंज का पासा चला गया।
जिलाध्यक्ष का कथित अभियान डीडीसी के चुनाव में ऐसा उल्टा पड़ा की तीस सीटों वाली जिला पंचायत में भाजपा समर्थितों की जीत सात की संख्या पर ही सिमट कर रह गई। परिणाम देखकर जिलाध्यक्ष और उनके टीम के खास कथित चहेते जिनमे नरैनी, बबेरू और तिंदवारी क्षेत्र के पार्टी जनप्रतिनिधियों के नाम हैं वह सभी भौचक्के हैं। मातम हैं कि क्या से क्या हो गया? पासे उल्टे पड़ गये।
बताते हैं कि जिले में विकास के लिये चर्चित पार्टी के एक विधायक नें काफी प्रयास किया कि जिताऊ पार्टी उम्मीदवारों को ही मैदान में लाया जाये, लेकिन नोटों की चमक के आगे सही सुझाव और प्रयास को दर किनार कर दिया गया।पार्टी चुनाव में अपेक्षित प्रदर्शन नहीं कर पाई।
जिला पंचायत में भाजपा की स्थिति देखते हुये अब तो पार्टी के अंदर जिलाध्यक्ष रामकेश निषाद की स्थिति एवं पकड़ कमजोर सी बताई जा रही हैं। नकारा और लालची की छवि नें उनपर घेरा सा डाल दिया हैं! हालत की गंभीरता यह तक चर्चा में पहुंच गई हैं कि यदि अगले साल विधानसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन अच्छा रखना हैं तो जिलाध्यक्ष पद पर समय रहते बदलाव करना होगा और किसी समर्पित, निष्ठावान को जिले की कमान सौंपनी होगी।
वर्तमान जिलाध्यक्ष के कारण जिला पंचायत चुनाव में कई बागी भी हो गए। इनमें जहां जीत भी हुई वहीं पार्टी वोटों का बटवारा भी हो गया,और बसपा का चुनावी पारा चुनौती बनकर सामने आ गया।
संवाद विनोद मिश्रा