
बांदा डीवीएनए। प्रदेश में बांदा समेत चार जिलों में बंद पड़ी कताई मिलों के चलते प्रदेश का होजरी उद्दोग अंतिम सांसे गिन रहा है। इस मुद्दे पर मिल प्रबंधन और मजदूर नेताओं के बीच कई बार हुई द्विपक्षीय वार्ता बिना किसी परिणाम के निष्फल रही।लेकिन योगी सरकार ने होजरी उद्दोग कोकुछ दिनों पूर्व बजट में जिस प्रकार बढ़ावा देनें की बात कही उससे बंद कताई मिलों के संचालन की उम्मीदें जगी हैं। बांदा सदर विधायक प्रकाश दिवेदी नें तो विधान सभा में बांदा कताई मिल को चालू कराने की मांग जिस जोरदारी से उठाई उससे मजदूरों में आशा की उम्मीद जागी है।
बांदा स्थित कताई मिल समेत रसड़ा (बलिया), जौनपुर और मेजा (प्रयागराज) की कताई मिलें लंबे अरसे से बंद हैं। यूपी स्टेट यार्न कंपनी लिमिटेड प्रबंधन ने इन्हें बीमारध्घाटे में बताकर बंद कर दिया था। बांदा की कताई मिल 3 दिसंबर 1998 को बंद हुई थी। उस समय मिल में 1350 मजदूर काम कर रहे थे। लगभग 10 हजार किलो कच्चे सूत का उत्पादन हो रहा था।
मिल बंदी के बाद से ही मजदूर और उनके संगठन लगातार मिल चालू करने और बकाया भुगतान के लिए आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन मामला इलाहाबाद ट्रिब्यूनल कोर्ट और भारत सरकार के वित्तीय पुनर्निर्माण बोर्ड (बायफर) तक पहुंच चुका है।और एक आश्चर्य की बात यह भी हैं कि जो इन मिलों में लिपकीय वर्ग निकाला गया उसे महज 760 रुपया ही मात्र बतौर पेंशन प्रति माह मिलती हैं जो सरकार की क्रूरता की दास्तां कहती है। सरकारी विज्ञापनों में वाह-वाह और हकीकत में आह-आह की सच्चाई उजागर करतीं है। खैर बंद कताई मिल चालू हो तो रोजगार और बाजार दोनों की स्थिति निश्चित ही सुधरेगी।
संवाद विनोद मिश्रा