
बांदा डीवीएनए। जिले में कालिजर दुर्ग के जंगल में सुबह आग लग गई। तेज हवा के कारण करीब ढाई किलोमीटर दायरे में फैली आग ने विकराल रूप धारण कर लिया। इससे पर्यटकों का प्रवेश रोकना पड़ा। शाम साढ़े तीन बजे फिर से प्रवेश दिया गया। करीब 11 घंटे की मशक्कत के बाद भी आग पूरी तरह नहीं बुझी। ऊंचाई वाले क्षेत्रों में दमकल के नहीं पहुंचने से जंगल में लपटें और धुआं का गुबार दिखता रहा। शाम पांच बजे बांदा व चित्रकूट से आई दमकल गाड़ियां लौट गई। सुरक्षा गार्डो ने इसकी जानकारी पुरातत्व विभाग को दी। कयास है कि सुबह घूमने आए किसी पर्यटक के जलती बीड़ी या सिगरेट फेंकने से आग लगी।
सुबह करीब पांच बजे कालिजर दुर्ग के सातवें फाटक के पास सुरक्षा गार्डो ने धुआं देखा। कुछ ही देर में आग की लपटें नजर आने से अफरातफरी मच गई। गार्डो ने पुरातत्व विभाग के सर्किल ऑफीसर सतेंद्र कुमार को बताया। प्रशासनिक अधिकारी और कालिंजर पुलिस ने सूखी पत्तियों व झाड़ियों को हटाकर आग को आगे बढ़ने से रोकने का प्रयास किया, लेकिन सूखे पेड़ और झाड़ियां जद में आने से आग विकराल होती गई।
दमकल चार घंटे देरी से आग बुझाने पहुंची। अग्निशमन दस्ता किले की ऊंचाई देख बेबस हो गया। बाद में एक छोटी गाड़ी मंगाकर ऊपर भेजा गया, जो काबू पाने में नाकाम रही। दोपहर तक वन विभाग का कोई अधिकारी या कर्मचारी मौके पर नहीं पहुंचा। चैकी इंचार्ज हरिद्वार प्रसाद व सिपाहियों की टीम गार्डो की मदद से सूखी झाड़ियां हटाकर आग को आगे बढ़ने से रोकने का जतन करते रहे।
आग के कारण जंगल में लाखों रुपये कीमत के पेड़ जलकर राख हो गए। वहीं, बड़ी संख्या में पशु-पक्षियों के मरने का भी अनुमान है। पर्यटकों का प्रवेश रोकने से दुर्ग के नीचे भारी भीड़ जमा हो गई। बड़ी संख्या में लोग भगवान नीलकंठ के दर्शन करने पहुंचे थे, जिनको गेट से आगे नहीं बढ़ने दिया गया। अंदर जाने वाली सड़क को दोनों ओर से बंद रखा गया। पुरातत्व विभाग के सर्किल ऑफिसर सतेंद्र कुमार ने बताया कि आग जंगल क्षेत्र में लगी है।
किले के ऊपर पानी का इंतजाम नहीं होने से ट्रैक्टरों के जरिए पानी से भरे टैंकर भेजने पड़े। फायर ब्रिगेड अतर्रा यूनिट के विजय श्याम, बांदा के अनुज सिंह ने छोटी गाड़ियों की मदद से रास्ते के दोनों तरफ आग बुझाई।
संवाद विनोद मिश्रा