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गोवंसो की सुरक्षा बनी मुंगेरी लाल का सपना, जरूरत के मुताबिक बजट नहीं दे रही सरकार

बांदा (डीवीएनए)। सरकार गोवंसो की सुरक्षा के लिये परेशान है। पर उसकी यह योजना स्वयं की ही कमी से मुंगेरी लाल के सपने की कहावत चरितार्थ कर रही हैं। गौसालाओ के लिये बजट नहीं मिल रहा। जो आवंटन मिला वह ऊंट के मुंह में जीरा के समान हैं।गौ वंश ठंड और भूख से दम तोड़ रहें हैं। उदाहरण स्वरूप गुरेह गोशाला में चार गौवंश भूख ठंड में मर गये। पंचायत सचिव जब आये तो बोले मरने दो भाड़ में जाये।डीएम आनन्द सिंह से उम्मीद है की वह इस गौशाला की जांच करवाकर दोषियों को अवश्य दंडित करेगें।
बुंदेलखंड की प्रमुख समस्या अन्ना प्रथा के लिए गोशालाओं का निर्माण कराया गया। इन गोशालाओं के संचालन व गोवंशों के भरण-पोषण के लिए शासन से 12 करोड़ की धनराशि की मांग की लेकिन शासन की ओर से एक करोड़ 20 लाख रुपये ही निर्गत किए गए। जबकि अक्टूबर में भी करीब डेढ़ करोड़ की धनराशि जारी की गई थी। इन सब के बाद अब भी गोशालाओं के लिए नौ करोड़ की रुपये की दरकार है।
बुंदेलखंड में अन्ना प्रथा एक बड़ी समस्या बन चुकी है। जिससे सर्वाधिक नुकसान कृषि क्षेत्र को पहुंचता है। वहीं सड़कों में विचरण से आवागमन भी प्रभावित होता है। समस्या से निपटने के लिए सरकारी स्तर से कई योजनाओं का संचालन कर इससे निजात पाने की मुहिम चलायी जा रही है। बांदा जनपद में मौजूदा समय कुल 209 गोशाला संचालित हैं। इनमें 13 स्थाई शेष अस्थाई गोशाला हैं। इनमें लगभग 12 हजार गोवंश संरक्षित है और इनके भरण-पोषण में तकरीबन तीन करोड़ रुपये का खर्च प्रतिमाह आ रहा है। वित्तीय वर्ष 2020-21 की स्थिति को देखें तो अब तक बकाया करीब 12 करोड़ पहुंच चुका है। इसके एवज में अक्टूबर माह में एक करोड़ 50 लाख एवं हाल ही में एक करोड़ 20 लाख की धनराशि शासन द्वारा जनपद को दी गई है। लेकिन अभी भी 9 करोड़ से अधिक की धनराशि की दरकार विभाग को है। यूं तो सभी ब्लाकों में स्थाई व अस्थाई गोशालाएं चल रही हैं लेकिन कमासिन व बबेरू क्षेत्र में इनकी संख्या सर्वाधिक है। कई गोशालाओं का संचालन एनजीओ कर रहे हैं। मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ.राजीव धीर ने बताया कि मौजूदा वित्तीय वर्ष दो करोड़ 70 लाख रुपये मिले हैं। जिससे गोवंश का भरण-पोषण किया जा रहा है।
संवाद विनोद मिश्रा

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