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बांदा (डीवीएनए)। अन्ना प्रथा प्रशासन और जन सहयोग से ही समाप्त हो सकता है। सरकार के पास अन्ना मवेशियों के लिए बजट फिलहाल नहीं आ रहा। खेतों में फसलें लहलहाने की अवस्था में हैं। इन्हें अन्ना पशुओं से बचाने की किसानों ने खुद कोशिशें शुरू कर दी हैं। आपसी सहयोग से अन्ना प्रथा से निजात पाने का जज्बा महुआ ब्लाक के जरर गांव में सामने आया है।
यहां के किसानों ने आपस में चंदा जुटाकर गोशाला तैयार की है। इसमें तीन माह के लिए चारे और भूसे का भंडार कर लिया है। लगभग दो सौ गोवंशों को भी यहां रखा गया है। न सिर्फ जरर गांव, बल्कि आसपास के गांवों की फसलें सुरक्षित हो रही हैँ। जरर गांव के किसान अन्ना पशुओं से हलाकान हैं। प्रशासन, नेताओं और जनप्रतिनिधियों से अनेकों बार अपनी यह फरियाद बयां की, लेकिन कोई हल नहीं निकला।
बारिश ठीकठाक होने से अबकी फसल भी अच्छी होने की उम्मीद है। गेहूं, चना, सरसों, ज्वार सभी कुछ लहलहा रही है। अन्ना पशु इसे सफाचट कर देते हैं। ठंडी रातों में जान जोखिम में डालकर खेतों में फसल ताकी जा रही थी। हाल ही में गांव के कुछ किसानों ने खुद ही गोशाला बनाने और उसमें अन्ना गायों को रखने का फैसला लिया। आपस में चंदा जुटाया।
करीब 23 हजार रुपये की लागत से गायों के लिए तिरपाल आदि डालकर छाये का इंतजाम किया। लगभग पांच हजार रुपये का पयार खरीदा है। गांव के ओमप्रकाश मिश्रा, रामआसरे, बाबू शुक्ला, देवीदयाल आदि बताते हैं कि अस्थायी गोशाला में भूसा बैंक भी बना है। अगले तीन माह के लिए चारे का भंडार किया गया है। गड्ढे में बोरवेल से पानी भरा गया है। उन्होंने बताया कि लगभग दो सैकड़ा से ज्यादा गायें यहां रखी गई हैं। गांव के किसान नियमित रूप से इनकी देखभाल भी कर रहे हैं।
संवाद विनोद मिश्रा