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कुदरत ने छीनी आंखों की रोशनी, किस्मत को दोष न देकर लिखी नई इबारत!

मुरादाबाद डीवीएनए। अगर नाकामयाबी की वजह आप भी अपने हालात और किस्मत को मानते हैं तो आपको मुरादाबाद के छत्रपाल की कहानी जरूर देखनी चाहिए। जन्म के एक साल में ही छत्रपाल की आंखों की रोशनी चली गयी। बेहद गरीब परिवार में जन्में थे तो चुनौतियों का अंदाजा आप खुद लगा सकते हैं।

छत्रपाल दिव्यांग जरूर हैं, लेकिन मजबूर नहीं। उन्होंने अपनी परेशानियों के लिए किस्मत और हालात को दोष नहीं दिया और कुछ कर दिखाने की ठानी।

छत्रपाल ने जिस भी इंजन को हाथ लगाया उसकी मरम्मत करके ही चैन की सांस ली। उन्हें ये काम करते हुए 40 साल का लम्बा वक्त बीत चुका है। उनका दावा है कि ऐसा कोई इंजन नहीं बना, जिसे वो रिपेयर न कर सकें।


हम बात कर रहें हैं मुरादाबाद ज़िले की ठाकुरद्वारा तहसील के गाँव भायपुर निवासी छत्रपाल नामक एक ऐसे व्यक्ति की जिसकी आंखों से कुदरत ने लगभग 50 वर्ष पहले रौशनी छीन ली। लेकिन छत्रपाल ने जीवन के अंधेरे से हार नही मानी और अपनी मजबूत इच्छाशक्ति के बल पर आज एक अलग पहचान बनायी है। छत्रपाल अपने आस-पास ही नही दूर दराज़ के क्षेत्र मे डीज़ल इंजन, इलेक्ट्रॉनिक मोटर, चक्की, स्पेकर, कोल्हू, नलकूपों पर रखे इंजन को ठीक करने के लिए जाने जाते हैं।

छत्रपाल को इस हद तक महारत हासिल है कि वह ज़िला मुरादाबाद, ज़िला बिजनौर, ज़िला रामपुर के साथ- साथ उत्तराखण्ड के जिला उधमसिंह नगर,व ज़िला नैनीताल के भी कई हिस्सों मे अपनी सेवाएं देने जाते हैं।

छत्रपाल के मुताबिक़ उन्हें इस काम मे महारथ हासिल है और ऐसा कोई इंजन व मोटर नही जिसकी वह मरम्मत न कर सके।स् थानीय लोग भी छत्रपाल के इस अनोखे हुनर का लोहा मानते है और तो और उनके गांव के लोग तो उनसे इतने प्रभावित हैं कि गांव के लोगों ने उन्हें सूरदास नाम दे दिया है।

इसी नाम से उन्हें गांव भर मे जाना जाता है। छत्रपाल की सेवाएं लेने वाले लोगों से जब जानकारी की गई तो उन्होंने बताया कि छत्रपाल अपने काम मे पूरी तरह निपुण हैं और जिस मशीन को वह एक बार ठीक कर दें काफ़ी लम्बे अरसे तक उस मशीन को मरम्मत की ज़रूरत नही पड़ती।

छत्रपाल की सेवाएं लेने वालों से अधिकतर उनका वार्षिक कॉन्ट्रेक्ट रहता है वहीं छत्रपाल ने जानकारी देते हुऐ बताया कि वह लगभग 40 वर्षों से मशीन व इलेक्ट्रॉनिक मोटरों की मरम्मत का काम कर रहें हैं, जबकि महज़ एक वर्ष की आयु मे ही उनकी आंखों की रौशनी क़ुदरत ने उनसे छीन ली थी। छत्रपाल कहते हैं कि आंखों के अंधेरे को कभी जीवन मे उतरने नही दिया बल्कि अपनी इच्छाशक्ति के बल पर आज एक अलग पहचान स्थापित की है।


छत्रपाल अन्य दिव्यांग जनों को हिदायत देते हुऐ कहते हैं कि अपनी कमी को अपनी कमजोरी कभी न बनने दें बल्कि जब भगवान हमसे कुछ लेता है तो कई ऐसे गुण हमे दे देता है जो हमे एक नयी पहचान दिला सकते हैं बस हमे उस गुण की पहचान करनी है और आत्मनिर्भर बनना है।आज छत्रपाल के बुलन्द हौंसलो का ही नतीजा है कि समाज मे उनकी एक अलग पहचान है और वह दूसरों के लिए भी एक मिसाल क़ायम कर रहें हैं।

Digital Varta News Agency

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