
बांदा डीवीएनए। दयनीय दशा में मरणासन्न हालत में जिंदगी के आखिरी सांसे ले रही भाषा को अमृत पान मिलने से उसके पुनर्जीवन की उम्मीदें पेंग मारने लगीं हैं। उसमें जिंदगी के नई अंकुरे निकलने की उम्मीद जागृत हो गई है। कौन सी है वह भाषा। क्या नाम है उसका तो दिल थाम कर जान लीजिए वह है सभी भाषाओ की जननी मानी जानें वाली संस्कृत।
अब इस भाषा को अमृत कैसे मिलेगा? तो यह भी जानिये प्रदेश सरकार ने बजट में संस्कृत विद्यालयों को भी वरीयता दी है। अब इनको खराब स्थिति से उबारने के लिए गुरुकुल की तर्ज पर संचालित किया जाएगा। बांदा जनपद के 22 संस्कृत विद्यालयों का भी कायाकल्प होने की उम्मीद है।
संस्कृत विद्यालयों की बिगड़ती स्थिति के बारे में योगी सरकार चिंतित है। जिले में 20 वित्त पोषित व दो गैर वित्त पोषित संस्कृत विद्यालय हैं। जिसमें 17 माध्यमिक व पांच महाविद्यालय शामिल हैं। इनमें शिक्षकों की भारी कमी है। हालत यहां तक है कि रामलीला बांदा, पुंगरी, महुटा व भुजरख गांव के संस्कृत विद्यालय शिक्षक विहीन हैं। एक-एक शिक्षक संबद्ध कर विद्यालय चल रहे हैं। इसी तरह साथी व अतर्रा महाविद्यालय भी एकल शिक्षक के भरोसे चले हैं। वेतन विसंगति, लिपिक व चतुर्थ श्रेणी कर्मियों की कमी अलग से है। शौचालय, बाथरूम, पेयजल, विद्युत व चहारदीवारी की भी करीब 90 प्रतिशत विद्यालयों में समस्या है। जिससे पठन-पाठन दोनों प्रभावित हो रहे हैं। प्रदेश सरकार ने संस्कृत विद्यालयों को समस्याओं से उबारने के लिए विशेष पहल की है। बजट में संस्कृत विद्यालयों को गुरुकुल की तर्ज पर संचालित करने का सराहनीय निर्णय लिया है। इससे अब इन विद्यालयों में छात्रों को आवास, भोजन की तो व्यवस्था मिलेगी ही।
माध्यमिक संस्कृत शिक्षक कल्याण समिति के प्रांतीय उपाध्यक्ष ओम प्रकाश तिवारी का मानना है की गुरुकुल की तर्ज पर संस्कृत विद्यालयों को संचालित करने का सरकार का निर्णय सराहनीय है। बजट पास करने के लिए सरकार को धन्यवाद देते हैं। कहतें हैं की जनबल संस्कृत विद्यालयों को और दिया जाए। जिससे संजोए गए सपने साकार होते नजर आएं।
संवाद विनोद मिश्रा