
बांदा डीवीएनए। वर्तमान साल अलविदा हो रहा है।जिले के डीएम आनन्द सिंह अपने यहां के कार्यकाल में सौ दिनों का शतक लगाकर अपनी प्रशासनिक कुशलता एंव संवेदन शीलता, कार्य कौशल से जहां नये साल की पारी खेलने की ओर अग्रसर हैं, वहीं उनकी कार्य प्रणाली बांदा के कुछ पूर्व जिलाधिकारियों की याद दिलाती है। जैसे एके खुराना, धीरज साहू औऱ विशेष रूप से मुकेश मेश्राम की, जिन्होने इस पिछड़े बांदा जिले का मर्म समझा और विकास के पथ पर इसे अग्रसर किया।
अब जिलाधिकारी आनन्द सिंह इस पिछड़े जिले के विकास के लिये जो तार-तार होकर जार-जार आसूं बहा रहा है उसे पोछने को तत्पर हैं। शासन की प्राथिमिकता वाली सारी योजनाओ को कुशलता से धरातल पर लाने के लिए वह जिस तरह से समर्पित भाव से कार्य कर रहें हैं, तो जनता में प्रशंसा के पात्र बन जाना स्वाभाविक ही है।
आवासयोजना,आयुष्मान,बुन्देलखंड एक्सप्रेस वे के निर्माण में प्रगति,खेत और पेट को जल की उपलब्धता,गावों में पंचायत भवनों का निर्माण, मनरेगा,गौ वंशों की सुरक्षा, अन्ना प्रथा पर रोकथाम, भूमाफिया एंव खनन माफियाओं के विरुद्घ कठोर रुख के साथ ही कानून व्यवस्था भी पटरी पर बनी रहे इस दिशा में भी वह अपनी नजरे घुमाते रहते हैं। बांदा जिले का जब आनन्द कुमार सिंह नें कार्यभार संभाला था उस वक्त कोरोना के कहर से जिले को बचाना बड़ी चुनौती थी, परंतु सुबह से देर रात तक स्वास्थ व्यवस्थाओ का उनके द्वारा निरीक्षण एवं समीक्षाओं का दौर कोरोना के कहर से राहत दिलाने वाला रहा। इस दौरान से उनका ध्यान कुपोषण दूर करनें पर भी बना हुआ हैं।
यही कारण भी हैं की जनता के दिलों में वह “बागबां” के रूप में चर्चित हो गये। अवैध खनन चरचा में जरूर यदा-कदा उछलता है तो उस पर लगाम कसने की उनके स्तर से भरपूर कोशिशें होती हैं, यह बात अलग है की खनन माफिया तूं डाल-डाल, मैं पात-पात का खेल खेलते हैं। पर माफियाओं पर यही कहानी चरित्रार्थ सी होती हैं की “बकरे की मां आखिर कब तक खैर मनायेगी”।
कुल मिलाकर डीएम आनन्द सिंह ऩे जिले में विकास एंव अनुशासन क़ो गति देनें में जो प्रतिभा बिखेरी है वह गुजरते वर्ष में समीक्षात्मक तौर पर प्रसन्ननीय हैं, कोई अतिसियोक्ती नहीं।
संवाद विनोद मिश्रा
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